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अजीत कुमार तिवारी
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सम्पादक
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अजीत कुमार तिवारी
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अजीत कुमार तिवारी
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ममता साव9
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<noinclude><pagequality level="3" user="Kajal Choudhary 07" />{{Rh||'''प्रस्तावना'''}}</noinclude>महाकवि देवदत्त उपनाम 'देव' हिन्दी भाषा के महाकवियों में गिने
जाते हैं। हिन्दी के अन्यान्य महाकवियों की तरह इनके जीवन की
अनेक बातो के सम्बन्ध में भी अबतक सन्देह बना हुआ है। कुछ विद्वान्इ न्हें सनाढ्य ब्राह्मण मानते है और कुछ कान्यकुब्ज। यही हाल इनके जन्मस्थान के सम्बन्ध में भी है। कोई इन्हे इटावे का निवासी बतलाते हैं और कोई मौजा समान, जिला मैनपुरी का। शिवसिंह-सरोज में इन्हे समान जिला मैनपुरी का निवासी सनाढ्य ब्राह्मण लिखा गया है। परन्तु 'मिश्रबन्धु' इन्हें कान्यकुब्ज ब्राह्मण और इटावा-निवासी मानते हैं। अपने इस कथन के प्रमाण मे उन्होने निम्न दोहे दिये हैं:-
{{Rh||योसरिहा कविदेव को,नगर इटायो वास ।}}
{{***|4|char=x|8em}}
{{Rh||कास्यप गोत्र द्विवेदि कुल,कान्यकुब्ज कमनीय ।}}
{{Rh||देवदत्त कवि जगत मैं,भए देव रमनीय ॥}}
आप लोगो ने कुसुमरा जिला मैनपुरी से देव जी के वंशजों द्वारा प्राप्त एक वंशवृक्ष भी दिया है। इससे ज्ञात होता है कि देव जी के पिता का नाम बिहारीलाल था। जन्म के सम्बन्ध में देवजी ने इसी भाव-विलास में एक दोहा लिखा है कि-
{{Rh||सुभ सत्रहसौ छियालिस, चढ़त सोरहीं वर्ष ।}}
{{Rh||कढ़ी देव मुख देवता, भाव-विलास सहर्ष ।।}}
इस हिसाब से संवत् १७१६ में जब इनकी अवस्था सोलह वर्ष
की थी तब संवत् १७३० में इनका जन्म निश्चित है।
देव जी बहुत थोड़ी अवस्था से ही कविता करने लगे थे। 'भाव-
विलास' उन्होंने केवल १६ वर्ष की अवस्था में ही बनाया था। यह<noinclude>[[category:भाव-विलास]]</noinclude>
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ममता साव9
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जाते हैं। हिन्दी के अन्यान्य महाकवियों की तरह इनके जीवन की
अनेक बातो के सम्बन्ध में भी अबतक सन्देह बना हुआ है। कुछ विद्वान्इ न्हें सनाढ्य ब्राह्मण मानते है और कुछ कान्यकुब्ज। यही हाल इनके जन्मस्थान के सम्बन्ध में भी है। कोई इन्हे इटावे का निवासी बतलाते हैं और कोई मौजा समान, जिला मैनपुरी का। शिवसिंह-सरोज में इन्हे समान जिला मैनपुरी का निवासी सनाढ्य ब्राह्मण लिखा गया है। परन्तु 'मिश्रबन्धु' इन्हें कान्यकुब्ज ब्राह्मण और इटावा-निवासी मानते हैं। अपने इस कथन के प्रमाण मे उन्होने निम्न दोहे दिये हैं:-
{{Rh||योसरिहा कविदेव को,नगर इटायो वास ।}}
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{{Rh||कास्यप गोत्र द्विवेदि कुल,कान्यकुब्ज कमनीय ।}}
{{Rh||देवदत्त कवि जगत मैं,भए देव रमनीय ॥}}
आप लोगो ने कुसुमरा जिला मैनपुरी से देव जी के वंशजों द्वारा प्राप्त एक वंशवृक्ष भी दिया है। इससे ज्ञात होता है कि देव जी के पिता का नाम बिहारीलाल था। जन्म के सम्बन्ध में देवजी ने इसी भाव-विलास में एक दोहा लिखा है कि-
{{Rh||सुभ सत्रहसौ छियालिस, चढ़त सोरहीं वर्ष ।}}
{{Rh||कढ़ी देव मुख देवता, भाव-विलास सहर्ष ।।}}
इस हिसाब से संवत् १७१६ में जब इनकी अवस्था सोलह वर्ष
की थी तब संवत् १७३० में इनका जन्म निश्चित है।
देव जी बहुत थोड़ी अवस्था से ही कविता करने लगे थे। 'भाव-
विलास' उन्होंने केवल १६ वर्ष की अवस्था में ही बनाया था। यह<noinclude>[[category:भाव-विलास]]</noinclude>
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ममता साव9
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महाकवि देवदत्त उपनाम 'देव' हिन्दी भाषा के महाकवियों में गिने
जाते हैं। हिन्दी के अन्यान्य महाकवियों की तरह इनके जीवन की अनेक बातों के सम्बन्ध में भी अबतक सन्देह बना हुआ है। कुछ विद्वान् इन्हें सनाढ्य ब्राह्मण मानते है और कुछ कान्यकुब्ज। यही हाल इनके जन्मस्थान के सम्बन्ध में भी है। कोई इन्हें इटावे का निवासी बतलाते हैं और कोई मौजा समान, ज़िला मैनपुरी का। शिवसिंह-सरोज में इन्हें समान जिला मैनपुरी का निवासी सनाढ्य ब्राह्मण लिखा गया है। परन्तु 'मिश्रबन्धु' इन्हें कान्यकुब्ज ब्राह्मण और इटावा-निवासी मानते हैं। अपने इस कथन के प्रमाण में उन्होंने निम्न दोहे दिये हैं :—
{{block center|<poem>|योसरिहा कविदेव को,नगर इटायो वास।
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कास्यप गोत्र द्विवेदि कुल, कान्यकुब्ज कमनीय।
देवदत्त कवि जगत मैं, भए देव रमनीय॥</poem>}}
आप लोगों ने कुसुमरा ज़िला मैनपुरी से देव जी के वंशजों द्वारा प्राप्त एक वंशवृक्ष भी दिया है। इससे ज्ञात होता है कि देव जी के पिता का नाम बिहारीलाल था। जन्म के सम्बन्ध में देवजी ने इसी भाव-विलास में एक दोहा लिखा है कि :—
{{block center|<poem>सुभ सत्रहसौ छियालिस, चढ़त सोरहीं वर्ष॥
कढ़ी देव मुख देवता, भाव-विलास सहर्ष॥</poem>}}
इस हिसाब से संवत् १७४६ में जब इनकी अवस्था सोलह वर्ष की थी तब संवत् १७३० में इनका जन्म निश्चित है।
देव जी बहुत थोड़ी अवस्था से ही कविता करने लगे थे। 'भाव-विलास' उन्होंने केवल १६ वर्ष की अवस्था में ही बनाया था। यह<noinclude></noinclude>
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ममता साव9
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महाकवि देवदत्त उपनाम 'देव' हिन्दी भाषा के महाकवियों में गिने
जाते हैं। हिन्दी के अन्यान्य महाकवियों की तरह इनके जीवन की अनेक बातों के सम्बन्ध में भी अबतक सन्देह बना हुआ है। कुछ विद्वान् इन्हें सनाढ्य ब्राह्मण मानते है और कुछ कान्यकुब्ज। यही हाल इनके जन्मस्थान के सम्बन्ध में भी है। कोई इन्हें इटावे का निवासी बतलाते हैं और कोई मौजा समान, ज़िला मैनपुरी का। शिवसिंह-सरोज में इन्हें समान जिला मैनपुरी का निवासी सनाढ्य ब्राह्मण लिखा गया है। परन्तु 'मिश्रबन्धु' इन्हें कान्यकुब्ज ब्राह्मण और इटावा-निवासी मानते हैं। अपने इस कथन के प्रमाण में उन्होंने निम्न दोहे दिये हैं :—
{{block center|<poem>|योसरिहा कविदेव को, नगर इटायो वास।
{{***|4|char=x|4em}}
कास्यप गोत्र द्विवेदि कुल, कान्यकुब्ज कमनीय।
देवदत्त कवि जगत मैं, भए देव रमनीय॥</poem>}}
आप लोगों ने कुसुमरा ज़िला मैनपुरी से देव जी के वंशजों द्वारा प्राप्त एक वंशवृक्ष भी दिया है। इससे ज्ञात होता है कि देव जी के पिता का नाम बिहारीलाल था। जन्म के सम्बन्ध में देवजी ने इसी भाव-विलास में एक दोहा लिखा है कि :—
{{block center|<poem>सुभ सत्रहसौ छियालिस, चढ़त सोरहीं वर्ष॥
कढ़ी देव मुख देवता, भाव-विलास सहर्ष॥</poem>}}
इस हिसाब से संवत् १७४६ में जब इनकी अवस्था सोलह वर्ष की थी तब संवत् १७३० में इनका जन्म निश्चित है।
देव जी बहुत थोड़ी अवस्था से ही कविता करने लगे थे। 'भाव-विलास' उन्होंने केवल १६ वर्ष की अवस्था में ही बनाया था। यह<noinclude></noinclude>
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पृष्ठ:भाव-विलास.djvu/९
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अजीत कुमार तिवारी
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सौरभ तिवारी 05
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<noinclude><pagequality level="4" user="सौरभ तिवारी 05" />{{rh|५२०|सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय|}}</noinclude>{|width=100%
|-
| {{gap}}२९७, ३०१, ३०४, ३०७, ३०८, || गांधी, मगनलाल खुशालचन्द, २३७, २५६,
|-
| {{gap}}३१०-१२, ३२०, ३२१, ३३२, ३३८, ||{{gap}}३९२
|-
| {{gap}}३४०, ३४१, ३४४, ३४७, ३५०, || गांधी, रामदास, १८८, २२५
|-
| {{gap}}३५३, ३५४, ३६०, ३६९, ३७४, || गांधी, हरिलाल, ३७२
|-
| {{gap}}३७७, ३८६, ३८८, ३८९, ३९१- || गॉर्डन, जनरल, २२
|-
| {{gap}}९३, ४०१-२, ४१४, ४१५, ४२७, || गुजरात खादी मण्डल, –द्वारा प्रकाशित
|-
| {{gap}}४३२, ४३७, ४४७, ४५०, ४५८, || {{gap}}आँकड़े, ५७
|-
| {{gap}}४६०-६३, ४६७, ४७०, ४७४, ४७६; || गुह, १८७
|-
| {{gap}}–और कताई, २३८, २६९; –और || गुहराज, २८८
|-
| {{gap}}चरखा, ५, १०, १२, १३, १७९, || गुहराय, प्रतापचन्द्र, १४८
|-
| {{gap}}२०६, २२३, २४१, २४२, २७६, || गेट, सर एडवर्ड, ४९
|-
| {{gap}}२९६, ३०६, ३०९, ३४४, ३६९, || गेटे, ५६, ८८
|-
| {{gap}}३९०; –और रामनाम, ४६४-६६; || गेलीलियो, २१४
|-
| {{gap}}–बिहारमें, १५१; –महागुजरातमें, ५७ || गैड्स, डानस्के मैगासिन, ३४८
|-
| खादी कार्यकर्त्ता, ३१, १५०, २०१, २४६, || गैरिसन, विलियम लॉयड, १९१
|-
| {{gap}}३०१, ३२०; –[ओं] की जनगणना, || गोकुलदास, खीमजी, ४२७, ४३२
|-
| {{gap}}१९४ || गोखले, गोपाल कृष्ण, ३४, ३०५, ३७१,
|-
| खादी प्रतिष्ठान, १००, २२६ || {{gap}}४२३
|-
| खिलाफत, ४५० || गो-रक्षा, १५, ८१, ११९, १२०, १४४,
|-
| खिलाफत सम्मेलन, २२३-२४, २२६ || {{gap}}१५३, १६७-६८, २५६, २५७, २८३,
|-
| खिलाफतवादी, १०० पा॰ टि॰ || {{gap}}२९२-९४, २९८, ३०५, ३६६-६८,
|-
| खुदाबक्स, खान बहादुर, ३०९ || {{gap}}३८५, ३९२, ३९८, ३९९, ४०६, ४२०-
|-
| {{gap|5em}}{{larger|'''ग'''}} || {{gap}}२१, ४२७, ४३८-४०, ४६०, ४७४;
|-
| गंगाराम, सर, ४४५ || {{gap}}–और गोशालाएँ, १६७-६९, २१२,
|-
| गांधी, कस्तूरबा, २२५, ४६९ || {{gap}}२५४, २९४, २९८, ३०५, ३६६-६८,
|-
| गांधी, काशी, ३८ || {{gap}}३८५
|-
| गांधी, छगनलाल, ३८, २२५, २५६, ३३४, || गोविन्द सिंह, गुरु २७३
|-
| {{gap}}३७२ || गौड़, रामदास, ३५७, ४१३
|-
| गांधी, जमनादास, ३८, २२५ || ग्रन्थ साहब, २७३
|-
| गांधी देवदास, २१८, ४६९ || ग्रिफिथ डेन, ३८०
|-
| गांधी, नारणदास, ९० || {{gap|5em}}{{larger|'''घ'''}}
|-
| गांधी, प्रभुदास, ३८ || घोष, प्रफुल्ल, १८८
|}<noinclude></noinclude>
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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 25.pdf/८१
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2022-07-21T13:29:38Z
Manisha yadav12
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/* अशोधित */ '________________ टिप्पणियाँ ४७ कलकत्ता और बर्माके बीच स्टीमरके डेकपर सफर करनेवालोंपर क्या गुजरती थी। उस समय मैंने डेक-यात्रियोंकी दशाको अमानवीय बताया था। उस समय मैं समझता थ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
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text/x-wiki
<noinclude><pagequality level="1" user="Manisha yadav12" /></noinclude>________________
टिप्पणियाँ
४७ कलकत्ता और बर्माके बीच स्टीमरके डेकपर सफर करनेवालोंपर क्या गुजरती थी। उस समय मैंने डेक-यात्रियोंकी दशाको अमानवीय बताया था। उस समय मैं समझता था कि मद्रास और रंगूनके बीच यात्रा इससे भी कहीं बदतर थी। इसका कारण स्टीमर कम्पनीकी कभी न बुझनेवाली पैसेकी प्यास थी। वह जानते हुए भी जहाजोंपर गन्दगी और जिल्लतको चलने देती थी, बल्कि उसे शह भी देती थी। सरकार, जो कम्पनीको डेक-यात्रियोंके शारीरिक और नैतिक स्वास्थ्यकी घोर अवहेलना करते हुए अपनी स्टीमर-सेवा चलाने देती है अथवा कम्पनी, जो यह अन्याय करती है, अथवा यात्री, जिन्हें विदेशमें आजीविका कमानेकी खातिर शारीरिक और नैतिक दोनों ही दृष्टियोंसे गन्दगीमें लोटना भी कबूल है-- इनमें से किसका दोष है, सबसे बड़ा अपराधी कौन है, यह कहना मुश्किल है। श्री एन्ड्रयूज एक निजी पत्रमें कहते हैं कि वे शीघ्र ही डेकपर यात्रा करनेवालोंकी दशामें निश्चित सुधार होनेकी आशा करते हैं। हम आशा करते है कि इस नेक अंग्रेजकी आशा पूर्ण होगी।
ध्यान दीजिए अ० भा० खादी बोर्ड के मन्त्रीने सभी सम्बन्धित लोगोंके लाभार्थ नीचे लिखी सूचनाएँ भेजी हैं:
(१) अधिकांश सूत भेजनेवाले सदस्योंने अपना रजिस्टर-नम्बर नहीं लिखा है। इसका कारण शायद यह हो कि प्रान्तीय खादी मण्डलोंने अपनेअपने सदस्योंको उनके रजिस्टर-नम्बरको सूचना न दी हो।
(२) रजिस्टरों में वर्णानुक्रमसे सदस्योंकी सूची नहीं दी गई है। उनमें उनके नाम खोजने में भी दिक्कत पड़ती है। इस तरहकी वर्णानुक्रमणिकाके सम्बन्धमें जो हिदायतें दी गई हैं, उनका पालन बहुत कम प्रान्तोंने किया है। जिन सदस्योंने अपना रजिस्टर-नम्बर नहीं लिखा है, रजिस्टरमें वर्णानुक्रमसे सूची न होनेपर उनके नाम छाँटना प्रायः असम्भव हो जाता है।
(३) हिदायतोंके विपरीत कितने ही सदस्यों और गैर-सदस्योंने अपना सूत सीधा यहाँ, इस दफ्तरको भेज दिया है। उन्हें सूचित कर दिया जाना चाहिए कि आगेसे सदस्य और गैर-सदस्य, दोनों अपना-अपना सूत अपने प्रान्तके ही दफ्तर में भेजा करें।
(४) बहुतेरे लोगोंने सूतको लम्बाई नापकर नहीं भेजी है। प्रान्तीय मन्त्रीको चाहिए कि वे पार्सल रवाना करनेके पहले यह देख लें कि हर शख्सके सूतपर पर्ची लगी है या नहीं और उसपर आवश्यक तफसील दर्ज है या नहीं।
सूत-कताईकी व्यवस्था उसी हालतमें पुर-असर और कामयाब हो सकती है जब कि दी गई हिदायतोंका पालन कामिल तौरपर किया जाये। इसलिए मैं आशा करता
१. सी० एफ० एन्डयजके लेखके सारशिके लिए देखिए “पत्र : सी० एफ० एन्ड्रयजको", २५-८-१९२४ की पाद-टिप्पणी।
Gandhi Heritage Portal<noinclude></noinclude>
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Manisha yadav12
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text/x-wiki
<noinclude><pagequality level="1" user="Manisha yadav12" />{{rh||टिप्पणियाँ|४७}}</noinclude>कलकत्ता और बर्माके बीच स्टीमरके डेकपर सफर करनेवालोंपर क्या गुजरती थी। उस समय मैंने डेक-यात्रियोंकी दशाको अमानवीय बताया था। उस समय मैं समझता था कि मद्रास और रंगूनके बीच यात्रा इससे भी कहीं बदतर थी। इसका कारण स्टीमर कम्पनीकी कभी न बुझनेवाली पैसेकी प्यास थी। वह जानते हुए भी जहाजोंपर गन्दगी और जिल्लतको चलने देती थी, बल्कि उसे शह भी देती थी। सरकार, जो कम्पनीको डेक-यात्रियोंके शारीरिक और नैतिक स्वास्थ्यकी घोर अवहेलना करते हुए अपनी स्टीमर-सेवा चलाने देती है अथवा कम्पनी, जो यह अन्याय करती है, अथवा यात्री, जिन्हें विदेशमें आजीविका कमानेकी खातिर शारीरिक और नैतिक दोनों ही दृष्टियोंसे गन्दगीमें लोटना भी कबूल है--इनमें से किसका दोष है, सबसे बड़ा अपराधी कौन है, यह कहना मुश्किल है। श्री एन्ड्रयूज एक निजी पत्रमें कहते हैं कि वे शीघ्र ही डेकपर यात्रा करनेवालोंकी दशामें निश्चित सुधार होनेकी आशा करते हैं। हम आशा करते है कि इस नेक अंग्रेजकी आशा पूर्ण होगी।<ref> १. सी० एफ० एन्ड्रयजके लेखके सारांशके लिए देखिए "पत्र: सी० एफ० एन्ड्रयजको", २५-८-१९२४ की पाद-टिप्पणी।</ref>
{{c|ध्यान दीजिए}}
अ० भा० खादी बोर्ड के मन्त्रीने सभी सम्बन्धित लोगोंके लाभार्थ नीचे लिखी सूचनाएँ भेजी हैं:
'''(१) अधिकांश सूत भेजनेवाले सदस्योंने अपना रजिस्टर-नम्बर नहीं लिखा है। इसका कारण शायद यह हो कि प्रान्तीय खादी मण्डलोंने अपनेअपने सदस्योंको उनके रजिस्टर-नम्बरकी सूचना न दी हो।
(२) रजिस्टरों में वर्णानुक्रमसे सदस्योंकी सूची नहीं दी गई है; उनमें उनके नाम खोजने में भी दिक्कत पड़ती है। इस तरहकी वर्णानुक्रमणिकाके सम्बन्धमें जो हिदायतें दी गई हैं, उनका पालन बहुत कम प्रान्तोंने किया है। जिन सदस्योंने अपना रजिस्टर-नम्बर नहीं लिखा है, रजिस्टरमें वर्णानुक्रमसे सूची न होनेपर उनके नाम छाँटना प्रायः असम्भव हो जाता है।
(३) हिदायतोंके विपरीत कितने ही सदस्यों और गैर-सदस्योंने अपना सूत सीधा यहाँ, इस दफ्तरको भेज दिया है। उन्हें सूचित कर दिया जाना चाहिए कि आगेसे सदस्य और गैर-सदस्य, दोनों अपना-अपना सूत अपने प्रान्तके ही दफ्तर में भेजा करें।
(४) बहुतेरे लोगोंने सूतको लम्बाई नापकर नहीं भेजी है। प्रान्तीय मन्त्रीको चाहिए कि वे पार्सल रवाना करनेके पहले यह देख लें कि हर शख्सके सूतपर पर्ची लगी है या नहीं और उसपर आवश्यक तफसील दर्ज है या नहीं।'''
सूत-कताईकी व्यवस्था उसी हालतमें पुर-असर और कामयाब हो सकती है जब कि दी गई हिदायतोंका पालन कामिल तौरपर किया जाये। इसलिए मैं आशा करता<noinclude></noinclude>
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Manisha yadav12
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/* शोधित */
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<noinclude><pagequality level="3" user="Manisha yadav12" />{{rh||टिप्पणियाँ|४७}}</noinclude>कलकत्ता और बर्माके बीच स्टीमरके डेकपर सफर करनेवालोंपर क्या गुजरती थी। उस समय मैंने डेक-यात्रियोंकी दशाको अमानवीय बताया था। उस समय मैं समझता था कि मद्रास और रंगूनके बीच यात्रा इससे भी कहीं बदतर थी। इसका कारण स्टीमर कम्पनीकी कभी न बुझनेवाली पैसेकी प्यास थी। वह जानते हुए भी जहाजोंपर गन्दगी और जिल्लतको चलने देती थी, बल्कि उसे शह भी देती थी। सरकार, जो कम्पनीको डेक-यात्रियोंके शारीरिक और नैतिक स्वास्थ्यकी घोर अवहेलना करते हुए अपनी स्टीमर-सेवा चलाने देती है अथवा कम्पनी, जो यह अन्याय करती है, अथवा यात्री, जिन्हें विदेशमें आजीविका कमानेकी खातिर शारीरिक और नैतिक दोनों ही दृष्टियोंसे गन्दगीमें लोटना भी कबूल है--इनमें से किसका दोष है, सबसे बड़ा अपराधी कौन है, यह कहना मुश्किल है। श्री एन्ड्रयूज एक निजी पत्रमें कहते हैं कि वे शीघ्र ही डेकपर यात्रा करनेवालोंकी दशामें निश्चित सुधार होनेकी आशा करते हैं। हम आशा करते है कि इस नेक अंग्रेजकी आशा पूर्ण होगी।<ref> १. सी० एफ० एन्ड्रयजके लेखके सारांशके लिए देखिए "पत्र: सी० एफ० एन्ड्रयजको", २५-८-१९२४ की पाद-टिप्पणी।</ref>
{{c|ध्यान दीजिए}}
अ० भा० खादी बोर्ड के मन्त्रीने सभी सम्बन्धित लोगोंके लाभार्थ नीचे लिखी सूचनाएँ भेजी हैं:
(१) अधिकांश सूत भेजनेवाले सदस्योंने अपना रजिस्टर-नम्बर नहीं लिखा है। इसका कारण शायद यह हो कि प्रान्तीय खादी मण्डलोंने अपनेअपने सदस्योंको उनके रजिस्टर-नम्बरकी सूचना न दी हो।
(२) रजिस्टरों में वर्णानुक्रमसे सदस्योंकी सूची नहीं दी गई है; उनमें उनके नाम खोजने में भी दिक्कत पड़ती है। इस तरहकी वर्णानुक्रमणिकाके सम्बन्धमें जो हिदायतें दी गई हैं, उनका पालन बहुत कम प्रान्तोंने किया है। जिन सदस्योंने अपना रजिस्टर-नम्बर नहीं लिखा है, रजिस्टरमें वर्णानुक्रमसे सूची न होनेपर उनके नाम छाँटना प्रायः असम्भव हो जाता है।
(३) हिदायतोंके विपरीत कितने ही सदस्यों और गैर-सदस्योंने अपना सूत सीधा यहाँ, इस दफ्तरको भेज दिया है। उन्हें सूचित कर दिया जाना चाहिए कि आगेसे सदस्य और गैर-सदस्य, दोनों अपना-अपना सूत अपने प्रान्तके ही दफ्तर में भेजा करें।
(४) बहुतेरे लोगोंने सूतको लम्बाई नापकर नहीं भेजी है। प्रान्तीय मन्त्रीको चाहिए कि वे पार्सल रवाना करनेके पहले यह देख लें कि हर शख्सके सूतपर पर्ची लगी है या नहीं और उसपर आवश्यक तफसील दर्ज है या नहीं।
सूत-कताईकी व्यवस्था उसी हालतमें पुर-असर और कामयाब हो सकती है जब कि दी गई हिदायतोंका पालन कामिल तौरपर किया जाये। इसलिए मैं आशा करता<noinclude></noinclude>
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पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 28.pdf/५५१
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ममता साव9
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<noinclude><pagequality level="3" user="ममता साव9" /></noinclude>{|width=100%
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| {{gap|5em}}{{larger|'''च'''}} || जनकधारी बाबू, ४११
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|चटर्जी, हरिपद, ६२ || जयकर, मु॰ रा॰, ४८९
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|चतुर्वेदी, बनारसीदास, ९१ || जयकृष्ण इन्द्रजित, ४७५, ४८६
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|चरित्रविजयजी, ४०३ || ठाकुर, रवीन्द्रनाथ, १२, १३, १२६, २६७,
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|चौंडे महाराज, २१२ || डायर, जनरल, ५१, ११०, ३१६
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|जनक, ४४३ || ड्रुमंड, ८८
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ममता साव9
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<noinclude><pagequality level="3" user="ममता साव9" />{{rh||सांकेतिका|५२१}}</noinclude>{|width=100%
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| {{gap|5em}}{{larger|'''च'''}} || जनकधारी बाबू, ४११
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|चतुर्वेदी, बनारसीदास, ९१ || जयकृष्ण इन्द्रजित, ४७५, ४८६
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