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पृष्ठ:भाव-विलास.djvu/१३
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2022-08-21T05:45:06Z
ममता साव9
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text/x-wiki
<noinclude><pagequality level="4" user="ममता साव9" />{{rh||स्थायी-भाव लक्षण|५}}</noinclude>कारण। ताके-उनके। जिनहिं जानि-जिनको जान लेने पर। जान्यो परै-ज्ञात होता है।
{{larger|'''भावार्थ'''}}―धर्म से अर्थ, अर्थ से काम और काम से सुख प्राप्त होता है। सुख का कारण शृङ्गार रस है। शृङ्गार रस के कारण भाव हैं। यहाँ पर उन्ही का वर्णन किया जाता है; क्योंकि उन्हें जान लेने पर शृङ्गार सुखदायक प्रतीत होता है।
<poem>{{c|{{larger|'''दोहा'''}}}}
{{block center|थिति, विभाव, अनुभाव अरु, कह्यो सात्विक भाव।
संचारी अरु हाव ये, वरण्यो षड्विधि भाव॥}}</poem>
{{larger|'''शब्दार्थ'''}}―कह्यो—वर्णन किये हैं। षड्विधि—छः तरह के।
{{larger|'''भावार्थ'''}}―स्थायी, विभाव, अनुभाव, सात्विक, संचारीभाव और हाव-ये भावों के छः भेद कहे गये हैं।
<poem>{{c|{{x-larger|'''१–स्थायी-भाव-लक्षण'''}}
{{larger|'''दोहा'''}}}}
{{block center|जो जा रस की उपज में, पहिले अंकुर होइ।
सो ताको थिति भाव है, कहत सुकवि सब कोइ॥
नवरस के थिति भाव हैं, तिनको बहु बिस्तारु।
तिन में रति थिति भाव तें, उपजत रस शृङ्गारु॥}}</poem>
{{larger|'''शब्दार्थ'''}}―अंकुर होइ—पैदा होता है, उत्पन्न होता है। थिति भाव—स्थायी भाव। बहु—बहुत। बिरतारु—फैलाव, वर्णन। उपजत—पैदा होता है।<noinclude></noinclude>
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पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/१
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2022-08-21T05:26:21Z
अजीत कुमार तिवारी
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/* आवश्यक नहीं */
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text/x-wiki
<noinclude><pagequality level="0" user="अजीत कुमार तिवारी" /></noinclude><noinclude></noinclude>
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पृष्ठ:हवा के घोड़े.djvu/५१
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2022-08-21T02:36:14Z
Manisha yadav12
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text/x-wiki
<noinclude><pagequality level="1" user="अनुश्री साव" /></noinclude>________________
एकदम जोर का धमाका हया और धुन्धलाहट में से महमूद गजनी बड़ी तेजी के साथ घोड़े पर चढ़ा हुग्रा अपनी सेना के माथ प्रगट हुया और महमूद गजनवी का घोड़ा सोमनाथ के जगमग-जगमग करते मन्दिर के स्वर्णमय द्वार पर जा रुका । महमूद गजनवी ने उन टूटे हुए हीरे और मोतियों के ढेर को देखा और उसकी आँखें तमतमा उठी, फिर उसने सोने की बनी उस मूर्ती को निहारा तब उसका हृदय धड़कने लगा-राजो . महमूद गजनवी ने सोचा यह साली राजो कहाँ से टपक पड़ी उसके राज्य में ? उस नाम की कौन स्त्री है क्या वह इसे जानता है . क्या वह इससे प्यार करता है . प्यार का विचार आते ही महमूद गजनवी ने जोर का ठठाहाका मारा . महमूद गजनवी और प्यार ! . महमूद गजनवी को अपने बनाए हुए गुलाम से प्यार है . और फिर इस नौकर राजो से कैसे हो सकता है ? ।
महमूद गजनवी ने उस स्वर्ण भूति पर चोट पर चोट लगानी शुरू कर दी । श्राराय कि जब पेट पर लगा, तब वह फट गया और इसमें से शाहबुद्दीन की खीर और फालुदा निवालने लगा। महमूद गजनवी ने देखा तो हथोड़ा उठाकर अपने सिर पर दे मारा।
सैय्यद' का सिर फट रहा था । गहमूद गजनवी के सिर पर जो हथोड़ा पड़ा था , उसका धमाका उसके सिर पर गूंज रहा था। जब उसने करवट ली तो छाती में कोई ठण्डी-ठण्डी वस्तु के रेंगने का अनुभव हुअा ..सोमनाथ और स्वर्णमयी मूर्ति उस के दिमाग से निकल गई धीरे-धीरे उसने भट्टी के अंगारों के सामने जलती हुई अपनी आँखें खोली...राजो, फर्श पर बैठी पानी में भिगो-भियो क र कपड़े की गद्दियाँ उसके माथे पर रख रही थी। ___ जब राजो ने माथे पर से कपड़ा उतारने का प्रयत्न किया तव सैय्यद ने उसका हाथ पकड़ लिया और हृदय पर रख कर धीरे-धीरे
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हवा के घोड़े<noinclude></noinclude>
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Manisha yadav12
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/* शोधित */
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<noinclude><pagequality level="3" user="Manisha yadav12" /></noinclude>एकदम जोर का धमाका हुआ और धुन्धलाहट में से महमूद गजनी बड़ी तेजी के साथ घोड़े पर चढ़ा हुआ अपनी सेना के साथ प्रगट हुआ और महमूद ग़जनवी का घोड़ा सोमनाथ के जगमग-जगमग करते मन्दिर के स्वर्णमय द्वार पर जा रुका। महमूद ग़जनवी ने उन टूटे हुए हीरे और मोतियों के ढेर को देखा और उसकी आँखें तमतमा उठी, फिर उसने सोने की बनी उस मूर्ती को निहारा तब उसका हृदय धड़कने लगा---राजो महमूद गजनवी ने सोचा यह साली राजो कहाँ से टपक पड़ी उसके राज्य में? उस नाम की कौन स्त्री है क्या वह इसे जानता है क्या वह इससे प्यार करता है प्यार का विचार आते ही महमूद गजनवी ने जोर का ठठाहाका मारा महमूद गजनवी और प्यार! महमूद गजनवी को अपने बनाए हुए गुलाम से प्यार है और फिर इस नौकर राजो से कैसे हो सकता है?
महमूद गजनवी ने उस स्वर्ण भूति पर चोट पर चोट लगानी शुरू कर दी। आशय कि जब पेट पर लगा, तब वह फट गया और इसमें से शाहबुद्दीन की खीर और फालुदा निवालने लगा। महमूद गजनवी ने देखा तो हथोड़ा उठाकर अपने सिर पर दे मारा।
सैय्यद का सिर फट रहा था। महमूद गजनवी के सिर पर जो हथोड़ा पड़ा था, उसका धमाका उसके सिर पर गूँज रहा था। जब उसने करवट ली तो छाती में कोई ठण्डी-ठण्डी वस्तु के रेंगने का अनुभव हुआ.. सोमनाथ और स्वर्णमयी मूर्ति उस के दिमाग़ से निकल गई धीरे-धीरे उसने भट्टी के अंगारों के सामने जलती हुई अपनी आँखें खोलीं...राजो, फर्श पर बैठी पानी में भिगो-भियो कर कपड़े की गद्दियाँ उसके माथे पर रख रही थी।
जब राजो ने माथे पर से कपड़ा उतारने का प्रयत्न किया तव सैय्यद ने उसका हाथ पकड़ लिया और हृदय पर रख कर धीरे-धीरे
५०
हवा के घोड़े<noinclude>{{rh|५०]||हवा के घोड़े}}</noinclude>
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2022-08-21T04:17:59Z
Manisha yadav12
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text/x-wiki
<noinclude><pagequality level="3" user="Manisha yadav12" /></noinclude>एकदम जोर का धमाका हुआ और धुन्धलाहट में से महमूद गजनी बड़ी तेजी के साथ घोड़े पर चढ़ा हुआ अपनी सेना के साथ प्रगट हुआ और महमूद ग़जनवी का घोड़ा सोमनाथ के जगमग-जगमग करते मन्दिर के स्वर्णमय द्वार पर जा रुका। महमूद ग़जनवी ने उन टूटे हुए हीरे और मोतियों के ढेर को देखा और उसकी आँखें तमतमा उठी, फिर उसने सोने की बनी उस मूर्ती को निहारा तब उसका हृदय धड़कने लगा---राजो महमूद गजनवी ने सोचा यह साली राजो कहाँ से टपक पड़ी उसके राज्य में? उस नाम की कौन स्त्री है क्या वह इसे जानता है क्या वह इससे प्यार करता है प्यार का विचार आते ही महमूद गजनवी ने जोर का ठठाहाका मारा महमूद गजनवी और प्यार! महमूद गजनवी को अपने बनाए हुए गुलाम से प्यार है और फिर इस नौकर राजो से कैसे हो सकता है?
महमूद गजनवी ने उस स्वर्ण भूति पर चोट पर चोट लगानी शुरू कर दी। आशय कि जब पेट पर लगा, तब वह फट गया और इसमें से शाहबुद्दीन की खीर और फालुदा निवालने लगा। महमूद गजनवी ने देखा तो हथोड़ा उठाकर अपने सिर पर दे मारा।
सैय्यद का सिर फट रहा था। महमूद गजनवी के सिर पर जो हथोड़ा पड़ा था, उसका धमाका उसके सिर पर गूँज रहा था। जब उसने करवट ली तो छाती में कोई ठण्डी-ठण्डी वस्तु के रेंगने का अनुभव हुआ.. सोमनाथ और स्वर्णमयी मूर्ति उस के दिमाग़ से निकल गई धीरे-धीरे उसने भट्टी के अंगारों के सामने जलती हुई अपनी आँखें खोलीं...राजो, फर्श पर बैठी पानी में भिगो-भियो कर कपड़े की गद्दियाँ उसके माथे पर रख रही थी।
जब राजो ने माथे पर से कपड़ा उतारने का प्रयत्न किया तव सैय्यद ने उसका हाथ पकड़ लिया और हृदय पर रख कर धीरे-धीरे<noinclude>{{rh|५०]||हवा के घोड़े}}</noinclude>
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